दुर्गेश मोहन की रचना

क्या कसूर था उसका?
मोमिता श्रद्धा की मूरत थी
चिकित्सक बनकर सेवा का करती थी काम।
जनजन के बीच बनाई अपनी विशिष्ट पहचान।

कितने रोगियों को दी थी जीवन

खुद न बचा सकी अपनी जान।

क्या कसूर था उसका?

जिस पापी ने किया मोमिता को शर्मसार।

उसकी इज्जत और जिन्दगी उसने किया तारतार।
क्या कसूर था उसका?
नारी शोषित है
उस पर होने लगा अत्याचार।
उसे अपनी रक्षा हेतु
अब उठाना होगा हथियार।
क्या कसूर था उसका?
या अपनी पहचान बनानी हो
या अपनी इज्जत बचानी हो।
हमें नहीं डरना _घबराना है
सिर्फ उसका प्रतिकार करना है।
क्या कसूर था उसका?
नारी अब अबला नहीं है
हर प्रश्न और परिस्थिति का
देगी जवाब।
वह भी संसार में
पूरी करना चाहती है ख्वाब।
क्या कसूर था उसका?
निर्भया हो या हो मोमिता
अब जुल्म मत सहो।
उस दरिंदे को तुम ही
स्वयं सबक दो।
अब सुरक्षा स्वयं करो
चाहे बनो काली।
अपनी अस्मत और जान की
करो रखवाली।
क्या कसूर था उसका?
दुर्गेश मोहन
बिहटा, पटना (बिहार)

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