काव्य संग्रह : काव्य रंगोली
कवयित्री : संतोष पुरी
ISBN : 978-93-340-7615-8
प्रकाशन : स्वाभिमान प्रकाशन
मूल्य : 200/-
वर्ष : 2024

श्रीमती सन्तोष पुरी द्वारा रचित कविताओं का गुलदस्ता प्रस्तुत है। इसमें मानवीय करुणा, मैत्री, मुदिता, प्रकृति-प्रेम, मानवीय सम्बन्धों, देशप्रेम और अध्यात्म से संपृक्त विविध काव्य-पुष्प सुवासित हो रहे हैं।
प्रकृति -प्रेम प्रस्तुत काव्य-संग्रह का प्रमुख पक्ष है। फ़िर चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से अथवा परोक्ष रूप से चित्रित हुआ हो। आलम्बन एवं उद्दीपन रूप में प्रकृति यहाँ जीवन व जगत के सत्य उद्घाटित करती चलती है।
इस दृष्टि से अनुभूति, प्रकृति की गोद में, हे जलदेवता ! तुझे शत-शत नमन, दूर गगन की छांव में आदि कविताएं उल्लेखनीय हैं।
‘प्रकृति की गोद में’ कविता देखिए-
प्रकृति के सौंदर्य में नाचो-गाओ, मौज मनाओ,
उसकी अद्भुत सुंदरता में रम जाओ और खो जाओ।

एक असीम विराट सत्ता के प्रति कवयित्री के ह्रदय में समर्पण-भाव है। इसी समर्पित मनःस्थिति में वह ‘गीत’, ‘श्याम की जोगन हो जाऊं,’राम जी पधारे देखो राम जी पधारे’, ‘सब तज हरि भज’, ‘बस तू ही तू है’, ‘माँ दुर्गा की स्तुति’,में भक्ति-भाव को लेखनीबद्ध करती हैं। दूसरी ओर ‘जीवन क्षणभंगुर है’, ‘जीवन के टेढ़े मेढ़े रास्ते’ ‘का पलटवार’ ‘ज़िन्दगी का सफर’ जीवन एक पहेली’ जैसी रचनाओं में वैराग्य के स्वर प्रमुख हैं। संसार की असारता का बोध होने पर भी वे मानव को जीवन में संघर्ष हेतु प्रोत्साहित करती हैं। उनकी कविता ‘संघर्ष ही जीवन है’ में पाठक के लिए यही संदेश निहित है-
जब कोशिश रंग लाएगी, तब ज़िन्दगी मुस्कुराएगी,
जब ज़िन्दगी मुस्कुराएगी, तो जीवन में ख़ुशहाली आएगी।

इसी प्रकार ‘जीवन है बढ़ने का नाम’ में वे मानवीय जिजीविषा को प्रणम्य स्वीकारते हुए सुख-दुःख में समभाव बना कर जीवन के द्वैत का स्वीकार अनुमोदित करती हैं। देखिए-
जीवन के अनेक रंग-रूपों को जीने की शक्ति है अपार
कहीं ग़म, कहीं ख़ुशियाँ भी तो हैं बेशुमार।

‘प्रभु – कृपा’ तुल्य कविताओं में अहोभाव की अभिव्यक्ति है-
कैसे प्रभु तुम्हारे प्रति अपना आभार दिखाऊँ
शब्द ही नहीं बने जिनसे मैं अपना प्यार जताऊं।

सकारात्मक दृष्टिकोण कवयित्री के समक्ष सर्वोच्च शक्ति है। ‘धुंधली आंखें’,’ मन ही होली’,’ प्यार और तक़रार’ प्रभृति कविताओं में वे जीवन-रस से आप्लावित हो प्रतिपल की उत्सवधर्मिता और सामंजस्य का मर्म प्रस्तुत करती-सी प्रतीत होती हैं-
अपनी प्यारी-प्यारी गृहस्थी को,
कुछ इस तरह सम्भाल लिया करो
कभी वह गुस्सा हों तो
तुम प्यार जता दिया करो।

प्रस्तुत काव्य-संकलन में देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाओं में ‘आज़ादी के गीत’, ‘भारत के जांबाजों को शत-शत नमन’, ‘मैं हूँ भारत की वीरांगना’, ‘शान तिरंगा’ आदि का नाम लिया जा सकता है। ‘शान तिरंगा’ में वे लिखती हैं-
तू ही है हमारे देश की आन, बान और शान तिरंगा,
तू ही देश का गौरव, हम सबकी पहचान तिरंगा।

देशप्रेम का एक सामान्य नागरिक के लिए क्या अर्थ हो सकता है, उसे मानव-सेवा के संदेश द्वारा कवयित्री व्यक्त करती हैं। ‘चलो ! कुछ अच्छे काम करें’ कविता देखिए-
दूर बस्ती में बच्चे यूँ ही घूम रहे हैं,
कुछ रो रहे है, कुछ यूँ ही आवारा घूम रहे हैं,
कुछ कॉपी-किताबें लाकर, विद्या का दान करें,
चलो ! मिलजुल कर कुछ अच्छे काम करें।

दार्शनिक सुर की कविताओं में ‘थोड़ा रुक’ आपाधापी को विषय बना आधुनिक मनुष्य को विश्रामपूर्ण मनःस्थिति में टिकने का भाव प्रस्तुत हुआ है। पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
थोड़ी देर सुकून से बैठें चल
कुछ अपनी सुना, कुछ मेरी सुन।

वे जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को जीवन की बड़ी उपलब्धि स्वीकारती हैं। ‘बड़ा अच्छा लगता है’, ‘छोटी-छोटी खुशियाँ’,’ प्यारा सबसे न्यारा घर’ आदि इस दृष्टि से मार्मिक बन पड़ी हैं।

भाव-माधुर्य के साथ-साथ भाषा व शिल्प की सरलता इस संग्रह की विशेषता है। जीवनानुभवों के अनेक क्षितिज इन कविताओं में प्रतिबिम्बित हुए हैं। पाठक के लिए बौद्धिक व भावात्मक सुख की अपेक्षा इन कविताओं से है। काव्य-सृजन उत्तरोत्तर परिपक्वता को प्राप्त करेगा-ऐसी अपेक्षा की जानी चाहिए।
कवयित्री सतत सृजनशील रहें। ऐसी शुभकामनाएं हैं।

डॉ. सुरेश नायक
पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर व अध्यक्ष,
हिंदी विभाग,
पटेल मेमोरियल नेशनल कॉलेज,
राजपुरा (पंजाब)

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