‘ स्वाभिमान-ई-मासिक ‘ माह जनवरी अंक – 2023 की विस्तृत समीक्षा
– बिन्देश्वर प्रसाद गुप्ता
पिछले हरेक अंकों की तरह यह अंक भी बेमिसाल रहा । दरअसल संपादिका डा. जसप्रीत कौर ‘ प्रीत की सूझबूझ की तारीफ करनी ही पड़ेगी। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने चुन-चुन कर स्तरीय रचनाओं को इस अंक में रखी है।
सर्वप्रथम संपादकीय की बात करूँ तो उन्होंने नए वर्ष की शुभकामनायें सिर्फ अपने पाठकों को ही नहीं बल्कि सभी देशवासियों को भी दी है , जो उनके ” सर्वधर्म हितायः , सर्व धर्म सुखायः ” तथा ” वसुधैव कौटुंबकम ” की भावना को चरितार्थ करती है । 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी प्रेम से अभिभूत होने के कारण अपने हृदयोद्गगार से अवगत कराया है –
‘ जिस भाषा ने हमें पहचान दी है , उसका आदर और प्रचार – प्रसार करना हमारा कर्तव्य है । ‘ उन्होंने सभी हिंदी सेवकों को बधाई भी दी है। …
13 जनवरी को पूरे देश में लोहड़ी के त्यौहार जोश- खरोश से मनाए जाने के साथ इस दिन लड़कियों के अत्याचारों से मुक्त कर विवाह करके उन्हें नया जीवन देने के लिए दूल्हा भट्टी का भी स्मरण कराया है । धार्मिक व सामाजिक महत्त्व विशेष महत्व को बताया। दूसरे दिन मकर संक्रान्ति होने के कारण सूर्य पूजा के महत्व की भी चर्चा की। फिर उन्होंने माँ कला की देवी, सरस्वती माता की पूजा – प्रार्थना और 26 जनवरी को हमारा राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें देने सहित पत्रिका के कलेवर के लिए सुन्दर कलाकृति में सजाए जाने पर चित्रकार रसीद गौरी का भी धन्यवाद ज्ञापन किया है।
इस प्रकार , संपादिका डॉ. जसप्रीत कौर प्रीत ने इस माह के कई पर्वों -त्यौहारों का स्मरण करा कर पाठकों के जीवन में उर्जा, सुख- समृद्धि और सफलता के नए आयाम से भरे -पूरे होने की शुभकामनाएं भी दी है जो पाठकों के प्रति उनकी संवेदना , करुणा , कोमल व मृदु स्वभाव को परिलक्षित करती है, इसमें दो मत नहीं ।
इस अंक की शुरुआत ही , जिसका कारण पिछले अंक में भी मैंने अपनी समीक्षा के तहत बताया था ,
विज्ञान व्रत , नोएडा की ग़ज़ल के एक नए अंदाज से होती है –
” वो सितमगढ़ है तो है , अब मेरा सर है ,तो है …”
“….पूजता हूँ बस उसे , अब तो पत्थर है तो है ।
ग़ज़ल की ख़ासियत तो उनके अर्थ में तो है ही, इसके अतिरिक्त , दूसरी ख़ासियत यह भी है कि, इसी ग़ज़ल का अंग्रेजी अनुवाद भी किया गया है , जिसे पाठकों ने पहली बार इतनी सटीक व उचित शब्दों से युक्त देखी होगी ।
कवि व पत्रकार बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता की ग़ज़ल-
” जिसे मैंने फर्श से अर्श पर लाया
उसी ने दुनिया की नजरों में गिराया….”
…… ” कुसूर मेरी ही थी यह बिन्देश्वर
उस बेवफा को मैंने खुदा बताया ।”
में कवि के भाग्य की विडम्बना को दर्शाती उनकी अति संवेदनशीलता व अतिभावुकता छलक पड़ती है ,जो पाठकों को मर्माहत करने में सक्षम है ।
इस अंक में इसी तरह की प्रेम से ओतप्रोत काफी सुंदर- सुंदर गज़लें देखने को मिलती है।
मोहम्मद मुमताज हसन , गया ( बिहार )की ग़ज़ल में प्रेम ही
सर्वोपरि है –
” नहीं नफरत का कोई जहान चाहता हूँ
हो सियासत की मीठी जुबान चाहता हूँ …”
जहाँ गुरदर्शन बल (मोहाली ,पंजाब) की ग़ज़ल ‘सच्चाई ‘ को बड़े साफ दिल से कह जाती है –
” दिल से दिलबर को चुनने में , वक्त तो लगता है
फिर इस जीवन को बुनने में , वक्त तो लगता है …”
वहीं , दिनेश चंद्र श्रीवास्तव ( गाजियाबाद ) की श्रृंगारिक रस से सराबोर ग़ज़ल विरहिणी की तपिश से अहसास करा जाती है । उनके हरेक शेर की बानगी तो देखिये-
” विरह ताप से जल रही क्या कर सकता शीत
विरहिन की पीड़ा मिटे , जब आए मनमीत..”
“…..प्रिया के प्रिय भुज पाश से मिलता है जो ताप
वैसा कहाँ अलाव है , सके शीत जो नाप ….”
“…..विरह अग्नि में जो तपे , हो प्रिय से अति दूर
ऋतु बसंत या हो शिशिर , मुख पर रहे न नूर …”।
उपर्युक्त इन बेहतरीन ग़ज़लों को इस अंक की उपलब्धि मानी जाएगी। राज प्रिया रानी की नज़्म काफी मार्मिक व हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति से परिपूर्ण थी-
” वक्त के हाशिए पर कई दफा मैं जिया
गैरों के गम को मैं खुद आँसुओं में पिया …”
जहाँ नए वर्ष के अवसर पर डॉ. शशिकांत शर्मा , नागपुर में नव वर्ष का हार्दिक स्वागत करते हुए सुझाव दिया है
” बीत गया सो बीत गया / अब उसका दुखड़ा रोना ना
आगामी कल कैसा होगा/इसकी चिंता करना ना …”
वहीं सुषमा संभ्राल , पटियाला तथा कर्नल रमेश चंद्रपुरी ,नई दिल्ली ने भी ने भी नववर्ष की बधाई दी , अपनी कविता के माध्यम से ही ।
मीनाक्षी शर्मा , लखनऊ( उत्तर प्रदेश) ने ‘ माँ की ममता ‘ कविता में माँ की पहचान बतायी जो सच्चाई है –
” माँ बिन घर- आँगन सुनसान है
माँ होती नहीं जिस घर में , देखो
वह घर, घर होता नहीं
वह तो वीरान है ….”
शोभा मिश्रा ने ” 31 दिसंबर ” पर बतायी –
” कोई किसी के लिए नहीं हो सकता …”।
सदानंद प्रसाद पटना ने ‘ नर प्रबल ,नारी अव्वल ‘ कविता में नर नारी दोनों की समानता की वकालत की है-
” पुरुष प्रबल , नारी है अव्वल
न है कोई दोनों में निर्बल
त्याग दें अपना दूषित गरल
रच ले एक सुंदर महल…”
पत्रिका में धार्मिक कवितायें भी बरबस मन को मोह लेती है। जहाँ मीनाक्षी श्रीवास्तव ने श्री राम को अपने दिल में बड़े प्रेम से बुलाया है- शीर्षक कविता-
” हृदय में विराजिये श्री राम …” में
और डॉक्टर राम सहाय बरैया , ग्वालियर ने –
” अंजनी माँ के लाल है , महावीर हनुमान
सारी दुनिया पूजती , देकर के सम्मान …”
वहीं संतोषपुरी ,नई दिल्ली ने ईश्वर के प्रति आभार प्रकट किया है-
” हे प्रभु ! यह तेरी ही कृपा का फल हमने पाया है
कितना अद्भुत, कितना सुंदर, यह संसार बनाया है…”
सोनिया आर्या , लोहाघाट, चंपावत ने स्त्री व नदी की तुलना करते हुए दोनों का स्वभाव एक समान है, तो कहती है-
” …. रूढ़िवादी विचारों से/ मुक्त करके
अविरल बहने दो….। ”
प्रोफ़ेसर शरद नारायण खरे , मंडला ( मध्यप्रदेश ) का
‘ राष्ट्र वंदन ‘ –
” भारत माँ के अभिनंदन में , आओ हम जय गान करें ….”
डॉ. सुरेंद्र दत्त सेमल्टी का ‘ आया है गणतंत्र लौटकर ‘ ,
प्रभु दयाल स्वर्णकार ‘प्रभु’ , ग्वालियर (मध्य प्रदेश ) ,डा. राजेंद्र राज , लखीसराय ( बिहार ) की ग़ज़ल , खुशवंत हनी पटियाला ( पंजाब ) की नज़्म , प्रभात कुमार धवन , पटना(बिहार ) की कविता – बाल गोविंद राम , ममता अरोड़ा की कविता- ‘ वक्त ‘ , शेफाली सहासमल , कटक ( उड़ीसा ) की कविता-
” मैं ऐसी ही हूँ, .. नकल तो नहीं हूँ मैं …”
अंजनी कुमार चतुर्वेदी , निवाड़ी ( मध्यपदेश ) का ‘…अक्षर अक्षर ज्ञान भरा है , प्यारी भाषा हिन्दी’ , गुरुदीन वर्मा , बारां (राजस्थान) की ‘ अधखिली यह कली ‘ आदि कवितायें भी विशेषरूप से प्रभावित करती है।
गद्य विधा में भी , लघुकथायें – रशीद गौरी , सोजात सिटी( राजस्थान) की ‘ बेबसी ‘ – मजदूरी पाने की ताकि उनके बच्चे खुशी से ईद मना सके ,
डा. मधु आंधी वॉल की ‘ दिल का रिश्ता ‘ – अपनों से बढ़कर रिश्ता खून का नहीं बल्कि दिल का होता है , तथा शिव डोयले, विदिशा की ‘ अपरिचय में परिचय ‘ में अपरिचित बुजुर्ग से परिचय का माध्यम बना बच्ची से , उसकी तोतली ज़ुबान में पढ़ी गई कविता और बुजुर्ग दस रूपये देता है , पारितोषिक के रूप में , फिर वह चल जाता है ….पाठकों के दिल को बींध देती है , साथ ही अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है ।
दुर्गेश मोहन , समस्तीपुर ( बिहार) का आलेख- “प्रसिद्ध प्राध्यापक व साहित्यकार डॉ. दीनानाथ शरण ” , साहित्यकार डॉक्टर दीनानाथ शरण के व्यक्तित्व से सिर्फ परिचय ही नहीं , बल्कि उनके साहित्यिक व्यक्तित्व से काफी महत्वपूर्ण , सारगर्भित व सार्थक जानकारी देता है । संदर्भ जुटाने में अवश्य काफी मेहनत लगी होगी , इसमें दो मत नहीं।
इन सभी के अतिरिक्त , पत्रिका ‘ स्वाभिमान ‘ नवंबर तथा दिसंबर- 2022 के दोनों अंकों की एक साथ विस्तृत समीक्षा, काफी मनोयोग , परिश्रम व समय देकर समीक्षक बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता पटना (बिहार) के द्वारा की गई है , जिससे पाठकों को प्रथम द्रष्टव्या में ही , पत्रिका के उन दोनों अंको की विशेषतायें व सम्मिलित रचनाकारों की रचनाएं तथा रचनाओं की विशिष्टता की जानकारी दे जाती है। समीक्षा के दौरान ही यह भी बतायी गई है कि स्व. टी.आर.शर्मा की कहानी – ‘ नल और दमयंती ‘ , प्रभात कुमार धवन , पटना (बिहार) का आलेख- ‘ गुरु नानक देव जी और खालसा पंथ ‘ दुर्गेश मोहन का ‘ संदीप राशनिकर के कलाकार व्यक्तित्व ‘ , बिन्देश्वर प्रसाद गुप्ता पटना (बिहार) की रंगमंचीय समीक्षा- प्रांगण का नाटक- ‘ संस्कारको नमस्कार ‘ आदि उस अंक की उपलब्धि मानी जायेगी।
स्वाभिमान साहित्यिक मंच की गतिविधियों के अंतर्गत मंच के द्वारा देश के 58 कवियों को विश्व गौरव सम्मान , 26 जनवरी को देशभक्ति से भरपूर रचनाओं की प्रतियोगिता कराई गई जिसमें 12 रचनाकारों को सम्मानित किए गए तथा हिंदी दिवस के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें सभी प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया ।
कुल मिलाकर पत्रिका पाठकों को साहित्य के प्रति रुझान पैदा करने तथा रचनाकारों को पत्रिका के नाम के अनुरूप स्वाभिमान का अहसास कराने में सक्षम है , यदि कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
– -बिन्देश्वर प्रसाद गुप्ता (समीक्षक)
पथ संख्या – 2 , द्वारिकापुरी
हनुमान नगर , कंकड़बाग
पटना- 800026 (बिहार)
पत्रिका का नाम – स्वाभिमान (ई मासिक पत्रिका)
संस्थापिका संपादिका – जसप्रीत कौर ‘ प्रीत ‘
सह सम्पादक एवं पृष्ठसज्जा – नरेश कुमार आष्टा
वर्ष – 3 अंक – 8 माह – जनवरी
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सुंदर और सारगर्भित समीक्षा। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
खूबसूरत अभिव्यक्ति
सुंदर सारगर्भित गहरी समीक्षा