गजल की अप्रतिम हस्ताक्षर है सरोजिनी तन्हाँ ‘: घनश्याम कालजयी
पटना :25/09/24 l कविता की बाढ़ तो शुरू से आती रही है l किंतु जब से कविता सपाट बयानी का चेहरा लेकर बदनाम हो रही है,या यूँ कहें, पाठकों से दूर होती जा रही है, तब से आप यह महसूस कर रहे होंगे कि आजकल गीत- ग़ज़लों की बाढ़ सी आ गई है l
                     यह सच है कि इस बाढ़ में गीत ग़ज़लों की बारीकियों को समझने वाले कम है l गीत- ग़ज़लों के छँद को समझने वाले और भी कम हैंl गीत – ग़ज़लों के माध्यम से अपने विचारों की नई अभिव्यक्ति देने वाले भी कम ही नज़र आते हैं l आखिर ऐसा क्यों ? निश्चित तौर पर आप कहेंगे कि सपाट बयानी से निराश होकर अधिकांश कवि, छँद की ओर मुड़ने लगे हैं l छँद का पूरा ज्ञान हो या न हो, वे अपने विचारों को कविता के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाने के जुनून में कविता के करीब पहुंचने के लिए छँद का उपयोग कर रहे हैं l ताकि कम से कम उनकी कविता सपाट बयानी की बोझिलता से पाठकों को उनके अपने विचारों से दूर न करें और इसमें एक हद तक वे सफल भी हो रहे है l 
  ऐसे कवि गीत- ग़ज़ल तक भले  नहीं पहुंच पा रहे हैं, लेकिन उनकी ऐसी रचनाएं गीत -ग़ज़ल के करीब तो होती ही हैं, पाठक को भी प्रभावित करती हैं । इतना ही नहीं उसमें सार्थक और जीवंत अभिव्यक्ति होती है तो वह पाठकों के  हृदय तक पहुंचने की भी क्षमता  रखती है l फ़िल्मी गीत – ग़ज़ल इस बात के सशक्त उदाहरण है l इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि गीत- ग़ज़ल का अस्तित्व खत्म हो गया या  गीत -ग़ज़ल नहीं लिखे जा रहें हैं l गीत- ग़ज़ल की बारीकियों को समझने वाले आज भी कई कवि हैं और वे सार्थक गीत – ग़ज़ल का सृजन भी कर रहे हैं l भले उनके कुछ गीत या ग़ज़ल आजाद ग़ज़ल की श्रेणी में आते हों l  ऐसे ही कवियों में मेरठ की एक कवयित्री  हैं सरोजिनी तन्हा, जो पिछले दो दशक से सार्थक और आज़ाद ग़ज़लों का सृजन कर रही है, और एक से बढ़कर एक आज़ाद ग़ज़लों के माध्यम से पाठकों के एक बड़े समूह को उन्होंने आकर्षित भी किया है l एक नमूना देखिए -कोई एहसास उतरता है ग़ज़ल कहती हूं /दर्द जब हद से गुजरता है ग़ज़ल कहती हूँ l”
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, गूगल मीट के माध्यम से, ” यूट्यूब चैनल के पेज पर आयोजित ‘ऑनलाइन हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन’ के प्रथम सत्र में डॉ सरोजिनी तन्हाँ की गज़लों पर अपनी डायरी प्रस्तुत करते हुए, संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उन्होंने कहा कि शायरा सरोजिनी तन्हा सिर्फ परिवार समाज की नहीं उस मोहब्बत पर भी खूब कहा है, जो हर एक इंसान के दिल की धड़कन होती है, और जिससे या कहें जिसके एहसास से कोई भी इंसान बचा नहीं रहता l बात जीवन की हो समाज की हो या फिर मोहब्बत की, सरोजिनी तन्हा गजलों की माला पिरोने में सिद्धहस्त नज़र आतीं हैं-
” मोहब्बत की ऐसी कहानी बनी हूँ./ मैं मीरा के जैसी दीवानी बनी हूँ./ जिसे मील के पत्थरों पर लिखा है= मैं मंजिल की वो ही निशानी बनी   हूँ.!/उनकी इन ग़ज़लों को पढ़ते हुए लगता है कि सरोजिनी तन्हा की आज़ाद ग़ज़लें हमारे दिल की धड़कन है!”
मुख्य अतिथि डॉ सरोजिनी तन्हा ने प्रथम सत्र में, एकल काव्य पाठ के तहत अपनी एक दर्जन कविताओं का पाठ किया l उपस्थित कवियों से रू- ब- रू होते हुए उन्होंने कहा कि -“कविता हमारे विचार की ऐसी कलात्मक प्रस्तुति है, जो छोटे से फलक में एक बड़ा फलक छुपाए रखती है।आज गीत गजल के रूप में लिखी कविताओं के प्रति पाठकों का अधिक आकर्षण हैl”
हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शायर कालजयी घनश्याम ने कहा कि अगर ग़ज़ल है तो विधि विधान से कही जानी चाहिए और बहर, काफिया, रदीफ चुनाव सही होना चाहिए। ग़ज़ल के दोषों से बचना चाहिए। अगर विधान पर सही नहीं है तो उसे आप आजाद ग़ज़ल का नाम दीजिए जिस पर कोई विधि विधान लागू नहीं होता। ग़ज़ल सरल भाषा में होनी चाहिए ताकि आम आम आदमी को समझ में आ जाय। टंकण त्रुटि का खास ख्याल रखना चाहिए क्योंकि कुछ शब्द हम लिखना कुछ और चाहते है पर मोबाइल खुद ही कुछ और लिख देता है l आज के कवि सम्मेलन में अधिकांश लोगों ने बेहतरीन कविताओं का पाठ किया है और इनमें से अधिकांश आजाद गजल है l गज़ल की अप्रतिम हस्ताक्षर है सरोजिनी तन्हा l
कवि सम्मेलन में अपनी गीत गजल कविताओं को प्रस्तुत करने वाले कवियों में प्रमुख है सर्वश्री कालजयी घनश्याम, अपूर्व कुमार, हजारी सिंह , सरोजिनी तन्हा, निर्मला कर्ण, तेज नारायण राय, सिद्धेश्वर , राज प्रिया रानी, मुकेश कुमार, रश्मि लहर, अनीता पांडया विजया मौर्या, पुष्प रंजन राज मिश्रा आदि l
प्रस्तुति : बीना गुप्ता (जनसंपर्क अधिकारी ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना, मोबाइल 9234760365

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