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(तुमको देखा तो ये ख़याल आया)

[] जख्म देकर दवा भी देती हो ?
ख़ुद को ऐसे मज़ा भी देती हो ?

रोने भी दो न ख्वाबों में आकर,
किस ख़ता की सज़ा भी देती हो ?

अपना रिश्ता भी कितना है प्यारा,
इश्क़ में जो नशा (हवा)भी देती हो!

दिल गवांकर रहें तुम्हारे हम ,
दिल से अपने दुआ भी देती हो !

पलते यादों में गीतों में जीते,
प्यार का वो सिला भी देती हो !

ख्वाब ही अब तो हैं सहारा बस ,
जिनका इक क़ाफ़िला भी देती हो !

ज़ख़्म खाता नया है दिल हर दिन,
ऐसा नश्तर छुवा भी देती हो !

नफ़्स धीमी हो धड़कने जो रुकें ,
दिल में ख़ुद को बसा भी देती हो l

जब भी नाकाम हो के गिरने लगे ,
अपनी यादें थमा भी देती हो l
[] सिद्धेश्वर[]

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One thought on “सिद्धेश्वर की ग़ज़लें जख्म देकर दवा भी देती हो”

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