वांग्मय क्षितिज एक साहित्यिक उपवन रजि . पंजाब की द्वितीय पाक्षिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन आज साहित्य की तीन विधाओं के साथ संपन्न हुआ। जिसमें कविता, लघुकथा तथा संस्मरण का समावेश किया गया था। कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ. विभा कुमरिया शर्मा ने स्वागत कथ्य और मार्च के महीने के मुख्य त्योहार तथा देश की आज़ादी के प्रति समर्पण हेतु प्राण त्यागने वाले भगत सिंह , राजगुरु ,सुखदेव को सादर नमन करते हुए किया । समस्त साहित्य प्रेमियों को वांग्मय क्षितिज की भावी योजनाओं से परिचित करवाया गया ।
कार्यक्रम का आरंभ डॉ . क्षमा लाल गुप्ता ने सरस्वती वंदना से किया और सभी रचनाकारों के लिए शुभकामना वीणा वादिनी के समझ रखी।
कुशल मंच संचालन की बागडोर डॉ. नीलम सेठी जी ने संभाली। कार्यक्रम का आरंभ समाज सेविका सेवानिवृत्त अध्यापिका हरमीत मीत ने अपनी कविता होली के माध्यम से- जीवन के रंग बिखरे- बिखरे रुबीना । इसे सहज लो ना के माध्यम से विविध रंगों की विशेषता बताते हुए हर रंगों का महत्व बताया। जीवन दर्शन से परिचित कराती उनकी कविता भावपूर्ण रही । नीरू ग्रोवर जी ने- वृंदावन जाऊं क्या शीर्षक से – सो गई मैं सपना देखा ।रोशनी है मेरी तरफ आती हुई। आंखें मेरी चुंधिया गई। स्वयं से वार्तालाप करती कविता भक्त और भगवान के भेद को मिटाती हुई प्रतीत हुई। कवयित्री सरला भारद्वाज जी के द्वारा महिला दिवस पर आधारित कविता सुनाई गई – मैंने देखे हैं तुम्हारी आंखों में सरसों के पीले खेत । बस के साथ दौड़ते हुए पेड़ । तू सामान्य नहीं है ,तुझे मैंने कई दृश्यों में पाया है उदास। मीनाक्षी शर्मा जी ने चुनाव के दौर में चुनावी फिजाएं , शीर्षक से कविता सुनाई- फिर छाएंगी चुनावी फिजाएं। तब आपको हमारी याद आएगी। बिछौने में नींद ना होगी । करवटों में रात बीत जाएगी। चुनावी संघर्ष का सुंदर चित्रण करते हुए उन्होंने वातावरण को गुदगुदा दिया। शर्मिला नकारा ने – मौसम है सतरंगी सा । कविता के माध्यम से राधा कृष्ण के प्रेम और भगत सिंह के प्रेम का वर्णन करते हुए प्रेम के वृहत रूप को दर्शाया।
किरणदीप कौर ने विदेश की तरफ जाने वाले लोगों द्वारा पीछे छोड़े गए ताला बंद घर और घरों के अंदर लगे पेड़ पौधों की उदासी और बंद दरवाजा के खुलने की इंतजार का हृदयग्राही वर्णन किया। उन्होंने पंजाबी भाषा में कविता पढ़ी – जित्थे कदी हर रिश्ता मजबूत सी। जित्थे हर दिन महफिल लग दी सी । अज्ज ओह वेहड़ा बां – बां करदा है । सूख गए जो बाग लगाए। सूख गए सारे पेड़ -पौधे……. । उनकी इस मार्मिक अफसोस जनक स्थिति चित्रण ने हर श्रोता के मन को भिगो दिया। बाल रचनाकार प्रीतीका श्रीवास्तव ने अनुभवजन्य कविता द्वारा कक्षा परिवर्तन से होने वाली भावनाओं को व्यक्त किया उन्होंने कहा कि – कक्षा परिवर्तन बड़ा ही महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। जिनसे जिंदगी का साथ होता है । वर्षों से जो हाथ, हाथ में थे। वह हाथ छूट जाते हैं….। पुरानी कक्षा से नई कक्षा का उत्साह और उसके साथ दोस्तों से बिछड़ने का ग़म बताने वाली उनकी कविता भावपूर्ण थी। शैली जग्गी जी के द्वारा गीत रूप में सुनाई गई कविता- ए जिंदगी गुजारीं, भरोसा बनाए रखना। तू विपरीत आशाओं में ।उम्मीद जगाए रखना। सुनाकर निराशा से उबरने का संदेश दिया।
पूजा महाजन ने अपनी बेटी को कविता समर्पित करते हुए कहा- प्यारी सी सूरत उसकी । भोला सा चेहरा । अपनी हरकतों से मेरा जी लुभाती है । वह खुश रहे मेरी हसरत है । मेरी बेटी मेरा दिल लुभाती है। जहां एक तरफ पूजा महाजन स्वयं रचनाकार है वहीं उनके दो मासूम छोटे बच्चे भी अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं और वांग में क्षितिज के बाल सदस्य भी हैं। सर्वांश महाजन ने- चंदा मामा मेरे प्यारे मामा हो तुम । तारों संग आते हो तुम। अंधेरों में भी साथ निभाते हो । कविता सुनाई तथा नित्या महाजन ने जीवन खुश रहता है दोस्तों के साथ। कहकर दोस्ती के महत्व को दर्शाया। धीरिका शर्मा जी ने पति संग होली मनाने की चाहत को नायिका के माध्यम से प्रकट करते हुए कहा – हर होली बेरंग निकली। इस बार तुम रंग लगाना। परदेसी हुए पिया मेरे । इस बार जरूर चले आना। मनदीप कौर भदौर जी ने – मेरे राम युगों -युगों से , तुम लोगों के मन में समाए हो . . कविता कहकर राम नाम की व्यापकता और समकालीनता को दर्शाया।
साहित्यिक गोष्ठी का दूसरा चरण था- लघु कथा एवं संस्मरण। लघु कथा सुनते हुए जागृति जी ने वृद्ध- आश्रम विषय पर आधारित कहानी ‘श्रवण पुत्र,’ डॉ.क्षमालाल गुप्ता जी ने ‘परिणाम ‘ काजल जी ने ‘जीवों पर दया’ शीर्षक से लघु कथा सुनाई जिसमें मानवता का, भावनात्मक संवेदना , व्यावहारिकता और दया की भावना थी ।
संस्मरण के दौर में डॉ. नीलम सेठी जी ने ऑस्ट्रेलिया यात्रा को ‘साफ़ और खुशनुमा हवाओं का देश ‘ शीर्षक कहकर सुनाया उनका यात्रा प्रसंग भरपूर जानकारी देने वाला , जन्मभूमि से प्रेम करने वाला, तथा चित्रात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया था। डॉ .विभा कुमरिया शर्मा ने ‘ समझ आ गया विघटन का कारण’ शीर्षक से अल्प ज्ञान, अधूरे धार्मिक ज्ञान को विषय बनते हुए संस्मरण सुनाया।
आज का कार्यक्रम अभूतपूर्व और सुखदाई था । नए रचनाकारों के जुड़ जाने से बहुत कुछ नया सुनने के लिए मिला साथ ही साथ एक दूसरे को सुनते हुए हर किसी के मन में नए विचार और सबकी कलम को नया आधार मिला । कार्यक्रम का समापन आभार प्रस्तुति के द्वारा डॉ. विभा कुमरिया शर्मा ने किया और सामूहिक कल्याण मंत्र के साथ गोष्ठी का सुखद समापन हुआ।
जगृति गौड़
पटियाला पंजाब